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16/02/2021  :  16:04 HH:MM
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस पर हिन्दी में निबंध
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प्रस्तावना

“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”।

यह वाक्य इस धरती के सपूत का है। जिसने जन्मभूमि, राष्ट्र को अपनी जन्म दात्री से भी बढ़कर श्रेष्ठ माना था। स्वतंत्रता के अमर सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विषय में एक कवि की यह युक्ति बड़ी ही सटीक और चरितार्थ रूप में सिद्ध होती है।

जन्म दात्री मां अपरिमित प्रेम में विख्यात है।

किंतु वह अपनी जन्मभूमि के सामने बस माता है।

नेताजी सुभाष चंद्र जी का जन्म और शिक्षा

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी सन 1897 में उड़ीसा राज्य की राजधानी कटक में हुआ था। इनके पिता श्री जानकीनाथ बोस कटक के सुप्रसिद्ध वकील थे। सुभाष जी के सगे भाई सरतचंद्र बोस भी देशभक्तों में उचित स्थान रखते थे।

सुभाष चंद्र जी की आरंभिक शिक्षा एक यूरोपियन स्कूल में हुई थी। सुभाष जी ने सन 1913 में मैट्रिक की परीक्षा में कोलकाता विश्वविद्यालय में दूसरे स्थान को प्राप्त किया था। इसके बाद उनको उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश दिलाया गया।

इस कॉलेज का एक अंग्रेज अध्यापक भारतीयों का अपमान करने के अर्थ में जाना जाता था। सुभाष चंद्र बोस से इस प्रकार का अपमान सहन ना हुआ और उस अध्यापक की उन्होंने पिटाई कर दी। पिटाई करने के कारण वे कॉलेज से निकाल दिए गए थे।

इसके बाद अपने सकाटीश विद्यालय से प्रथम श्रेणी में आई. सी. एस की परीक्षा पास करके स्वदेश आकर सरकारी नौकरी करने लगे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के भाई – बहन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस जी के पिता का नाम जानकीनाथ और उनकी माता का नाम प्रभावती था। इनकी 6 बेटियां और 8 बेटे थे, सुभाष चंद्र बोस जी उनकी नौवीं संतान और पांचवें नंबर के बेटे थे।

उनके सभी भाइयों में सुभाष चंद्र जी के पिता सुभाष चंद्र बोस जी से अधिक स्नेह और प्यार रखते थे। नेता जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के रेवे शॉप कॉलेजिएट स्कूल से प्राप्त करी थी।

नेताजी का स्वदेश प्रेम

सुभाष चंद्र बोस आराम-परस्त जिंदगी से बेहतर स्वराष्ट्र की दशा और जीवन को आराम-परस्त जीवन बनाने के अधिक पक्षधर थे। इसलिए उन्होंने सरकारी नौकरी पर लातमार कर स्वदेश प्रेम को महत्व दिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत को स्वतंत्र करने के अग्रणी दूत महात्मा गांधी के संपर्क में, सन 1920 में नागपुर में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन के समय आए थे। महात्मा गांधी के प्रभाव में आकर उन्होंने अनेक प्रकार की यातनाओ को सहते हुए आजादी की सांस ली है। बिना विश्राम का दृढ़ संकल्प करके इसका आजीवन निर्वाह भी किया।

आजाद हिंद फौज का गठन

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने पूर्ण स्वराज्य की प्राप्ति के प्रयास में फॉरवर्ड ब्लॉक दल का संगठन किया और आजादी के लिए सक्रिय कदम उठाया। इसी के लिए इन्होंने कांग्रेस दल से त्यागपत्र भी दे दिया था।

इनके अतः उत्साह और अद्भुत सूझ-बूझ सहित बेमिसाल योजना के कार्यान्वयन से अंग्रेजी सत्ता काँपने लगी। इसी कारण इनको कई बार गिरफ्तार भी किया गया और मुक्त भी किया गया।

एक बार इनको इनके ही घर में नजरबंद कर दिया गया था। तब यह वेश बदलकर नजरबन्दी से निकलकर काबुल के मार्ग से जर्मनी जा पहुंचे। उस समय के शासक हिटलर ने इनका सम्मान किया।

सन् 1942 में नेताजी ने जापान में आजाद हिंद फौज का संगठन किया। सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित यह आजाद हिंद फौज बहुत ही हिम्मती और बहादुरी वाली थी। जिनसे अखंड ब्रिटिश सत्ता कई बार कांप उठी थी।

इनके सामने ब्रिटिश शक्ति के पांव उखड़ने लगे थे। आजाद हिंद फौज के संगठन का नेतृत्व के द्वारा नेता जी ने संपूर्ण गुलाम नागरिकों को उत्साहित करते हुए यह बुलंद आवाज दी थी कि “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”।

साधनों और सुविधाओं के अभाव को झेलते हुए भी आजाद हिंद की फौज में अदम्य और अपार शक्ति का संचार था। जिसने कई बार अंग्रेज सैन्य शक्ति को कई मोर्चों पर परास्त किया था। लेकिन बाद में जर्मनी और जापान के पराजय के फल स्वरुप आजाद हिंद फौज को भी विवश होकर हथियार डालने पड़े थे।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सुविचार

नेताजी सुभाष चंद्र जी के जीवन से जुड़े अद्भुत और हम सभी को सही राह दिखाने वाले कुछ विचार थे। जिन्हें हमें हमारे जीवन में उतार कर अपना जीवन सफल बनाना चाहिए।नेताजी के सुविचार कुछ इस प्रकार है।

(1) सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत व्यक्ति के साथ समझौता करना है।

(2) सबसे महत्वपूर्ण विचार सुभाष चंद्र बोस जी ने दिया था “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा”

(3) हमेशा हमारे जीवन में आशा की किरण आती रहती है, हमें बस उसे पकड़ कर रखना चाहिए, भटकना नहीं चाहिए।

(4) यह हमारा फर्ज है कि हम आजादी की कीमत अपने और अपने त्याग और बलिदान से दे, जो आजादी हमें मिले उसकी रक्षा करने की ताकत हमें हमारे अंदर रखनी चाहिए।

(5) हमारा जीवन कितना भी कस्टमय, दर्द भरा क्यों ना हो, लेकिन हमें हमेशा आगे बढ़ते रहना चाहिए, क्योंकि मेहनत और लगन से सफलता मिलना तय है।

(6) जो अपनी ताकत पर भरोसा करता है वह सफलता जरूर पाता है। उधार की सफलता पाने वाला व्यक्ति हमेशा घायल सा ही रहता है। इसलिए अपनी मेहनत से सफलता प्राप्त करें।

(7) अपने देश के लिए अपना जीवन निछावर करना।

(8) हमेशा साहस अपने जीवन में बनाए रखें, ताकत से और मातृभूमि से प्रेम बनाए रखें, तो सफलता जरूर मिलती है।

नेताजी सुभाष चंद्र के यह विचार उन स्वतंत्रता सेनानियों के योद्धाओं में से एक हैं, जिन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के लिए और अपने मातृभूमि के लिए यदि मेरा जीवन भी समाप्त होता है तो मुझे अपनी मातृभूमि पर गर्व होगा, जिस मातृभूमि पर मैंने जन्म लिया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी

भारत में 1921 में बढ़ती हुई राजनीति के बारे में जब सुभाष चंद्र बोस जी ने समाचार पत्र में पढ़ा, तो वह अपनी उम्मीदवारी को छोड़कर वापस से भारत में आ गये। सिविल सर्विस को छोड़कर के भारतीय कांग्रेस से जुड़ गए।

सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी जी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे। क्योंकि वो थे गर्म मिजाज के जोशीले क्रांतिकारी और महात्मा गांधी जी उदारदल के थे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र जी के विचार भले ही अलग हो, लेकिन दोनों का मकसद एक ही था।

सुभाष चंद्र बोस जी और महात्मा गांधी जी जानते थे, कि हमारे विचार आपस में नहीं मिलते हैं लेकीन हमारा मकसद एक है जो की था देश को स्वतंत्रता दिलाना। इन सब तालमेल के ना मिलने के बाद भी सुभाष चंद्र बोस जी ने महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता के नाम से संबोधित किया था।

पर जब 1938 में सुभाष चंद्र बोस के राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित हुए, तब इन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। परंतु इनकी यह नीति गांधीवादी विचारों के अनुकूल नहीं थी।

1939 में सुभाष चंद्र बोस जी ने गांधीवादी प्रतिद्वंदी को हराकर जीत हासिल कि। लेकिन अब गांधीजी ने इसे अपनी हार मानी और जब गांधी जी को अध्यक्ष चुना गया तो उन्होंने कहा, कि सुभाष चंद्र बोस के जीत में भी हार है और मुझे ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस से त्यागपत्र दे देंगे।

गांधीजी के विरोध के चलते उनके विद्रोही अध्यक्ष ने त्यागपत्र दे दिया। गांधीजी के लगातार विरोध के कारण सुभाष चंद्र बोस जी ने स्वयं कांग्रेस को छोड़ दिया। उसके कुछ दिन बाद दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया था।

सुभाष चन्द्र जी की बेटी अनीता बोस

आप सभी को शायद ये बात ना पता हो कि सुभाष चन्द्र जी की एक बेटी भी है, जिनका नाम अनीता बोस है। जो हमेशा से भारत सरकार से ये मांग करती रही कि जापान के जिस मन्दिर में उनके पिता की अस्थियां रखी गई है, उनका डी. एन. ए. टेस्ट करा कर भारत लाया जाए।

अनीता कहती है जब वो चार साल की थी, तब सुभाष चन्द्र जी का निधन 18 अगस्त 1945 में एक विमान हादसे में हो गया। बताया जाता है की उसके बाद में सुभाष चन्द्र जी के जिंदा होने की खबरें खूब उड़ी, लेकिन सत्य क्या है वो आज तक नहीं पता चला।

उनकी मां ने अनीता बोस को कठिन परिस्थितियों में पाला और बड़ा किया था। दुनिया में ये किसी को नहीं पता था कि सुभाष जी ने शादी कर ली है और उनकी एक बेटी भी है। अनीता तब चार साल की थीं जब सुभाष जी का निधन 18 अगस्त 1945 को तायहोकू में एक विमान हादसे में बताया गया।

उसके बाद से सुभाष जी के जिंदा होने को लेकर खबरें तो खूब उड़ीं, लेकिन वो कभी सामने नहीं आए। उनकी मां ने कठिन स्थितियों में उन्हें पाला और बड़ा किया। बाहरी दुनिया में ये किसी को नहीं मालूम था कि सुभाष जी ने शादी कर ली थी और उन्हें एक बेटी भी है।

आजादी के बाद ये सच्चाई सामने आई, जब जवाहर लाल नेहरु जी ने इस बात से सभी को रूबरू करवाया। उन्होंने सुभाष चन्द्र बोस जी की पत्नी एंमली के लिए आर्थिक मदद भारत सरकार की ओर से दि। ये मदत कई सालो तक भारत सरकार की ओर से उन्हें मिलती रही।

अनीता सुभाष चन्द्र जी की बेटी, जब 18 साल की थी तब भारत आईं, तो उनका बहुत सम्मान किया गया।






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