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हाथ पैर बन जाते पंख | |||
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बन गए होते हाथ पैर ही, और परों के संग जुड़ जाते, 'एक' बोलने पर हो जाते, 'दो' कहते तो आगे बढ़ते, बढ़ने लगती 'तीन' बोलने, 'चार' बोलकर- उड़कर नभ में, 'पांच' बोलते ही झट से हम, कहते 'छह' तो तुरत पलटकर, 'आठ' बोलकर तुरत जोड़ते, 'नौ' कहने पर चलते वापस, 'दस' पर पैर टिका धरती पर, प्रभुदयाल श्रीवास्तव| | |||
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